August 22, 2014

भक्ति

हम सभी अपने अपनेभाई वहन
माता पिता पुत्र पत्नी इत्यादि तथा
समाज एवं संसार से सुख चाहते
है| और सुख प्राप्ति के विभिन्न
प्रयत्न करते है | ईश्वर की भक्ति
भी सुख प्राप्ति हेतु ही करते है|

   किसी से कुछ प्राप्त करने के
तीन उपाय हैं एक जोरजबरदस्ती
से दूसरा चोरीकर तीसरा मॉगकर|

   सांसारिक लोग सुख हेतुकिसी
न किसी से मॉगते है चोरी करते
हैं या जबरदस्ती पाने का प्रयास
करते हैं |

संसार में सुख नहीं है यहां कोई
सुखी नही है सब एक दूसरे से
मॉगते चोरी करते या जबरदस्ती
करते हैं |परन्तु जो रहेगा वही न
पायेंगे सो दुख व पदार्थ जो संसार
में है वह पाते हैं |

ईश्वर में सुख है | लेकिन वहा न
चोरी किया जा सकता न
जबरदस्ती मॉगने पर केवल इंद्रिय
सुख ही मिलेगा |

सब संसार ईश्वर का है सब जीव
जन्तु पेड़पौधे ईश्वर के हैं शरीर
ईश्वर के पंचभूतों का है अत: छोटे
से भूखण्ड पर कब्जा कर तेरा
तुझको अर्पण कहना मूर्खता है |
ईश्वर को कुछ देकर पाने की
इच्छा धुर्तता है | मंदिर में ही ताले
में बंद कर दिये है सोचना मक्कारी
है |

सुख केवल निश्छल हृदय व पवित्र
मन से ईश्वर भक्ति में भक्त को है |
ईश्वर भक्ति दवा है और समस्त दुख
क्लेश रोग है दवा का सेवन किये
बिना रोग से मुक्ति असम्भव है |
 
                    जनार्दन त्रिपाठी 

August 21, 2014

सूक्ष्म

श्रृष्टि संचालन प्रक्रिया पर ध्यान दें
तो प्रतीत होगा कि सुक्ष्म श क्तियों
के सहारे ही पृथ्वी सूर्य का चक्कर
लगाती है | तात्पर्य है कि सूक्ष्मशक्ति
स्थूल से ताकतवर होती है |
  जल स्थूल है लेकिन सूक्ष्म वाष्प
मे परिवर्तित होने पर उसकी ताकत
बढ़ जाती है | इसीप्रकार हर स्थूल
वस्तु सूक्ष्म मे परिवर्तित होने पर
ताकतवर हो जायेगी |

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