पॉच हजार वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को योगा-
भ्यास करने की अभिशंसा की थी | किन्तु अर्जुन
जैसे पराक्रमी ने योगपद्धति के कठोर विधि _
विधान का अनुसरण करने में स्पष्ट रूप सेअपनी
अयोग्यता प्रकट की थी | वास्तविक योगाभ्यास
इंद्रियो पर नियंत्रण है | और जब यह नियंत्रण
स्थाई हो जाय़ तो ईश्वर में मन को केन्द्रित करना
है | मन की एकाग्रता का अभ्यास करने हेतु
एकान्तवास लेना पड़ता है |
अत्यंत दुखद है कि अनेकानेक स्वयं घोषित
योगी „योगाभ्यास के प्रति लोगों के प्रवृति का
शोषण करते हुए अपना व्यापार चलाते हैं |
मनुष्य को कार्य व्यापार के क्षेत्र मे व्यावहारिक
होना चाहिए लेकिन योग के नाम पर व्यायाम
कलाओं के अभ्यास में लोगों का मूल्यवान समय
नष्ट नही करना चाहिए |
इस युग मे लोग सामान्यत: अल्पायु तथा आध्या-
त्मिक जीवन को समझने में अत्यंत मन्द होते हैं
यदि किसी की रूचि होती भी है तो वे तथाकथित
योगियों द्वारा अनेक प्रकार के छलप्रपंचों से पथ
भ्रष्ट कर दिये जाते हैं |
योग के पूर्ण अवस्था के ज्ञान का एकमात्र
उपाय भगवद्गीता के सिद्थान्तों का अनुकरण है|
पूर्ण योग के लिए आठ प्रकार की सिद्धियॉ हैं |
जनार्दन त्रिपाठी 9005030949
March 02, 2015
योग
सुख-दुख
किसी वस्तु में सुख या दुख नहीं है .दिमाग जिस
वस्तु से जितना सुख-दुख ग्रहण करने में रुचि
लेता है उतना अनुभव करता है |
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