October 13, 2015

जीवनी शक्ति (प्राण क्रिया)

शरीर यन्त्रवत है . इसके संचालन हेतु वायु
जल और भोजन की आवश्यकता होती है |
शरीर असंख्य कोशों से बना है |
हम जो भी क्रिया कलाप करते हैं .
उससे कोष नष्ट होते रहते हैं जिसके कारण
अंगप्रत्यंग में थकान आता है | यदि नये कोष
का निर्माण न हो और नष्ट हुए कोष उत्सर्जित
न हों  तो हम शिघ्र मृत्यु के ग्रास हो जाएंगे |
दिनभर में जितना हम ठोस आहार लेते है
उससे तीनगुना जल और जल से तीनगुना
आक्सीजन लेते हैं | आक्सीजन कोशों के
निर्माण में मुख्य भूमिका निभाता है |

सामान्यत: हम जो  वायु ग्रहण करते हैं  उसमें
79%नाईट्रोजन 20.96% आक्सीजन और.4%
कार्बनडाईआक्साइड होती है | स्वास द्वारा
आया हुआ नाईट्रोजन नि:स्वास द्वारा तुरन्त
बाहर निकल जाता है | साधारण स्थिति में लिए
गये स्वास से आक्सीजन का कुल 4.5% भाग
ही शरीर ले पाता है |  लम्बी और गहरी स्वास
से 13.5% तक आक्सीजन शरीर ग्रहण कर
लेता है जिससे नये कोष का निर्माण और नष्ट
हुए कोष का उत्सर्जन जल्दी जल्दी होता है  |

पृथ्वी पर देखा गया है कि न्यूगिनी के लोग
हृष्टपुष्ट और दिर्घायु होते हैं | उनका आहार
बहुत ही सामान्य कोटि का है फिर भी वे
उत्साह  और कार्य कुशल हैं |  यह इसलिए
कि लम्बी सॉस का एक व्यायाम  वे
नियमित करते हैं |
    आप निश्चित मानें कि जन्म से पूर्व निर्धारित
है कि आप इस जीवन में कितनी सॉसें लेंगे |
स्वॉस से स्वॉस के वीच समय बढाकर आप
दिर्घायु हो सकते हैं |

October 12, 2015

सिद्धि

मन की अपार सामर्थ्य को एक निश्चित मार्ग
में लगा देने से शक्ति के द्वार खुल जाते हैं |
यही सिद्धि है | ध्यान पूर्वक विचार करने से
ही हम किसी वस्तु के मूल स्वरूप और उसकी
वास्तविकता को जान सकते हैं |  ध्यानयोग
का साधक सिद्धि के मार्ग की ओर पग बढ़ाता
है . उसे हरक्षेत्र मे सफलता ही दिखाई देती है |
    इस विधि से व्यक्ति शक्ति का विकास
करता है | आर्थिकरूप से प्रगति करता है | और
अपनी भौतिक इक्छाओं को मूर्त रूप देता है |
ध्यान के विना ध्येय की सिद्धि संभव नही है |

जनार्दन त्रिपाठी
0 9005030949

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