January 24, 2011

ईश्वर

जिस प्रकार डूबते हुवे क़ो पानी से बाहर आने की ब्याकुलता होती है,ठीक उसी प्रकार की ब्याकुलता इश्वर क़ो जानने की होने पर इश्वर क़ो जाना जा सकता है/आराधना एवं उपासना मन की भावनाएं हैं,और मन की भावनाओं क़ो न रोका जा सकता है और न ही मन की भावनाओं द्वारा ईश्वर क़ो समझा जा सकता है।संसार के समस्त दुखों का जड़ बंधन है। जिस ब्यक्ति क़ो ईश्वर और मोक्ष की इच्छा है ,उसे भोगी प्राणियों का साथ छोड़ देना चाहिए,एक क्षण भीअपनी इंद्रियों को बहिर्मुख न होने देना चाहिए,अकेला ही रहकर चित्त को सर्वशक्तिमान ईश्वर में लगाना चाहिए, यदि संग करने की आवश्यकता ही पड़े तो निष्ठावान महात्माओं का ही संग करना चाहिए।  घर गृहस्ती एक ऐसी वस्तु है की जो उसके दांव पेच और प्रवंध आदि में एक बार भीतर तक प्रवेश कर जाता है वह अपने स्वरूप क़ो नही समझ सकता स्वजन सम्बन्धियों का एक स्थान पर इकट्ठा होना वैसा ही है जैसे प्याऊ पर पथिकों का/यह सब माया का खेल है और स्वप्न सरीखा है /सब भाग रहे हैं /क्यों?कहाँ और किसलिए? यह आजतक किसी ने नहीं समझा/इश्वर के स्वरूप के रह्श्य  क़ो वही जान सकता है जो निरंतर निष्कपट भाव से उसका चिन्तन करेगा / कर्म करना मनुष्य का प्रकृति जन्य गुड है/ मनुष्य सम्पूर्ण कर्मों क़ो इश्वर क़ो अर्पित कर गुड-दोष दृष्टि से रहित होकर कर्म करे तो वह कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है/प्रकृति के तीन गुडों सत्व रज और तम क़ो स्वीकार कर इस संसार की स्थिती ,उत्पत्ति, और प्रलय के लिए एक ही इश्वर विभिन्न नाम धारण किये हुए हैं/ कर्म करते समय भले एवं बुरे का ज्ञान कराने वाली शक्ति इश्वर का अत्यंत सुक्छ्म रूप है/ यह अब्यक्त  ,आदि अंत,और मध्य से रहित एवं नित्य है/ तथा अत्यंत गोपनीय है/ 

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