परलोक विज्ञानं सत्य है,तथा इसे प्रमाण देकर साबित करना कठिन है/मृत्यु से पूर्व जीव क़ो कष्ट होता है,किन्तु प्राण निकलते वक्त वह मूर्छित हो जाता है/और मूर्छा की अवस्था में ही प्राण निकलता है/शरीर से प्राण वायु निकल जाती है,और वहीं बैठे लोग नहीं देख पाते क्योंकि वायु क़ो जीव ने कभी नहीं देखा/ किसी भी मनुष्य का जीवन एक ही आत्मा से संचालित नहीं होता/ आत्माएं भिन्न भिन्न होती हैं -महात्मा, पुण्यात्मा ,देवात्मा ,पापात्मा ,दुष्टात्मा इत्यादि/सम्मोहित आत्मा एवं वायु के सहयोग से, मनुष्य जन्म लेने हेतु जीव, पुरुष के द्वारा, स्त्री के उदर में प्रवेश करता है/वहां एक रात्रि में कलल,५ रात्रि में बुदबुद ,१० दिन में बेर के समान,३० दिन में सिर निकल आते हैं, २ माह में अंगो का विकास, ३ माह में नख ,रोम,चर्म,अस्थि ,स्त्री पुरुष चिन्ह, चार माह में मांस आदि,५ वे माह में भूख प्यास लगती है , ६ ठवे माह में झिल्ली में लिपटकर दाहिनी तरफ घुमने लगता है/ ७ वे माह में ज्ञान शक्ति का विकास होने के कारण जीव इश्वर से कहता है कि यद्द्यपि मैबड़े कष्ट में हूँ संसार मय कूप में जाने कि मुझे तनिक भी इच्छा नहीं है,क्योंकि उसमे जाने वाले जीव क़ो माया घेर लेती है परिणामतः पुनः संसार चक्र में पड़ना पड़ता है/ इसके बाद प्रसव काल की वायु बाहर आने के लिए धकेलती है/ बालक ब्याकुल हो नीचे सिर करके बड़े कष्ट से बाहर आता है/ पूर्व स्मृति नष्ट हो जाती है , कोरे कागज के रूप में शिशु का मष्तिष्क बाह्य दुनियां के दांव -पेच में उलझता हुआ बल्यावाश्था,युवावश्था ,एवं बुजुर्गावाश्था,को प्राप्त होते हुए या बिच में ही मृत्यु को प्राप्त होता है /
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addhyatma
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