मन की निर्बलता धर्म पालन करने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा; / धर्म पालन करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित्त की चंचलता ,उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है/मनुष्य के कर्तब्य मार्ग में एक ओर आत्मा के भले बुरे कर्मों का ज्ञान और दूसरी ओर आलश्य एवं स्वार्थ्प्रता रहती है/बस मनुष्यइन्ही दोनों के बीच पड़ा रहता है /औरअंत में यदि उसका मन पक्का हुआ तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपना धर्म पालन करता है/ यदि उसका मन कुछ कल तक दुबिधा में रहा तो स्वार्थ्प्रता निश्चय ही उसे घेरेगी और उसका चरित्र घ्रिडा के योग्य हो जायेगा/ मन;मन का सासन हमारे शरीर पर ही नहीं जीवन के प्रत्येक क्छेत्र पर है/ मनोबल सफलता एवं प्रसन्नता का उद्दगम है/मन क़ो सशक्त बनाकर हम प्रतिकूलताओं में भी अपना अस्तित्व बनाये रख सकते हैं/ मनुष्य में सम्बन्ध ,रिश्ते, सामाजिक संरचना, सामूहिक जिम्मेदारी ,दया, क्छ्मा, परोपकार,इत्यादि मन से संचालित होने वाली संज्ञा हैं मनुष्य के आतंरिक प्रकृति का विकास मन करता है/मन की कम सक्रियता मानवीय भावो क़ो कम कर देती हैं/परिणाम स्वरूप मनुष्य तर्कशील तो बनता है,परन्तु भाव शुन्य भी/ मनुष्य के मन में बहुत से भले बुरे विचार निरंतर आते जाते रहते हैं, लेकिन मानव अपने विचारों के प्रवाह में निरंतर गोता लगाता रहता है/और अपने किसी भी विचार क़ो कार्य रूप नहीं दे पाता /और jo कार्य रूप deta है vah nishchit ही उसमें safal hota है/ मन स्वभावत चंचल है/किन्तु मन की एकाग्रता जीवन क़ो सफलता की ओउर ले जाता है/
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