August 05, 2011

चैतन्य आत्मा

चैतन्य आत्मा ;-मानव शरीर माता  के गर्भ में स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं होता ,उसके विकास का कारणशरीर के भीतर रहने वाला जीव है / जीव केबिना प्राकृत शरीर न आकार ग्रहण कर सकता  है और न ही विकसित हो  सकता है /जब किसी प्राकृत पदार्थ  में विकास लक्छित होता है ,तब यह समझा जाना चाहिए की उसमे चैतन्य आत्मा विद्यमान है / विराटविश्व उसी तरह विकसित हुआ है जिस तरह एक शिशु का शरीर विकसित होता है /इसलिए "दिब्य तत्व तर्कसंगत है " किन्तु यह वाणी एवं मन की अवधारणा से परे है / काळ इश्वर की शक्ति है /जो सब प्रकार से भौतिक गति का नियंत्रण करती है / लोग त्रिलोक में समय -समय पर होने वाले प्रलयों एवं जन्म-मृत्यु को भूल जाते हैं ,यही  माया है /
जनार्दन त्रिपाठी मो नं 9005030949.

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