January 30, 2011

सब में ईश्वर

जो ब्यक्ति सबमे इश्वर और इश्वर में सबको देखता है,उसके लिए इश्वर अदृश्य नहीं होते ,और न ही वह इश्वर के लिए अदृश्य होता है/  मनुष्य का मन उसका प्रभु की तरफ से ध्यान हटाता है/ मन जो भी खराब कार्य करता है,मनुष्य क़ो उश्का दंड भुगतना पड़ता है/ किसी क़ो नफरत की दृष्टि से देखने पर इश्वर शत्रु के रूप में, पुरुषार्थ करने पर पदार्थ के रूप में, चिन्तन करने पर ज्ञान के रूप में, एवं अलश्य करने पर रोग के रूप में इश्वर इसी संसार में प्राप्त होते हैं/ जिज्ञासु की जिज्ञासा होती है,की ब्रह्माण्ड की रचना करने वाले ने इसकी रचना क्यों की? जिस तरह गाना या गुनगुनाना एक स्वाभाविक क्रिया है वहां जरूरत शब्द की जरूरत नहीं,है उसी तरह दुनिया बनाने वाले क़ो भी/ मन में प्रश्न उठता है की जिस इश्वर ने इस प्रकार की रचना की उस  इश्वर क़ो किसने बनाया? उत्तर है की क्या इश्वर मरेगा ,यदि ओह मरता नहीं तो पैदा कैसे हो सकता / पैदा होना और मरना जीव से सम्बन्धित है,इश्वर से नहीं/
  जनार्दन त्रिपाठी

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