January 10, 2021

कुचक्र में मानव

आध्यात्मिक क्रियाकलापों द्वारा जीव, जीवात्मा  के साथ रह सकता है। लेकिन वह ऐसे भ्रम जाल फंसा रहता है जहां से निकलने की कोई गुंजाइश नहीं होती। वह प्रतिपल तन के सुख में डूबा रहना चाहता है। जीवात्मा के साथ रहने मे उसे तनिक भी अच्छा नहीं लगता। वह वैभव के ही उपायों में डूबता उतराता रहता है। 
                                  Janardan Tripathi 
                                      9005030949 

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