January 15, 2016

प्रकृति

प्रकृति का यह विश्वरूप परिमाण अत्यन्त
अद्भुत है कोई भी इसकी यथार्थ गणना
नही कर सकता और अपने चर्मचक्षुओं
से ग्रहनक्षत्रों के गमनागमन को नहीं देख
सकता | प्रत्येक मनुष्य प्रतिक्षण कर्म
करता है और कर्म करते करते स्वर्ग के
सुख तक पहूंच कर पुनः वापस आ जाता
है |

सुख

तृप्ति, सन्तुष्टि और आनन्द स्वयं से प्राप्त होते
हैं और भौतिक सुख समाज से प्राप्त होते हैं
एक भौतिक सुख हेतु तीन सुखों की तिलांजली
ठीक नहीं है | तीनों सुखों के प्राप्त होते ही
भौतिक सुख अनायास  प्राप्त हो जाता है |

अमरत्व

पृथ्वी पर कुछ भी स्थाई नही़ है| यह जड़ चेतन
संसार एक दूसरे के सहयोग से संचालित है |
सेवा एवं सहानुभूति की भावना से कर्म करता
हुआ जो मनुष्य मानवता के विकास हेतु सोचता
एवं कर्म करता है वह अपने नाम, रूप एवं कीर्ति
को पृथ्वी पर अमर कर देता है |

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