September 04, 2014

वैराग्य

घर बार छोड़कर कहीं जाकर बैठ
जाना वैराग्य नहीं है | घर छोड़ना
कोई बड़ी बात नहीं है | जिसके
मन में आसक्ति है „ वह कही चला
जाय वहा किसी न किसी चीज
से राग बना ही लेगा | जिसदिन
यह बात समझ में आ गई कि यह
शरीर मिट्टी है ; जिस संसार को
हम देख रहे हैं यह सदा नही रहेगा
और मृत्यु -सत्य एवं अवश्यम्भावी
है संसार किसी की भी जागीर
नही है| तो समझें वैराग्य हो गया |
ब्यक्ति के मन से नेता, कार्यकर्ता या 
उपदेष्टा का भाव गायब हो जाय ।
Janardantripathi 9005030949

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