खुश रहने के सिद्धांत ;- जो अच्छा वार्तालाप करे उसी से बोलें / ;---खुश रहें और खुश लोगों से सम्बन्ध रखें / ;--- जिन कर्मो का जीवन में कोई उपयोग न हो उसे कभी न अपनाएं / ;---सफल लोगों से अपने आप को जोड़ें / एवं उनके कार्यों में सहयोग करें / ;---वर्तमान तन्त्र को तभी तक जीवित रखें जब तक लोगों का सहयोग प्राप्त है सहयोगियों क़ी संख्या कम होने पर तन्त्र को बंद कर दें / ;---ध्यान रखें ;--जब सारे सात्विक लोग आलसी हो जाते हैं ,तो धन दौलत पर राक्छ्सी प्रवृति के लोगों का कब्जा हो जाता है /अतिथि सत्कार ;---आने पर स्वागत , -----एकांत में कुछ समय , -----और जाते वक्त कुछ कदम साथ चलें / भुत एवं भविष्य का विचार करके जो भी कार्य करेंगे ,आप सदैव उस कर्म से सुखी रहेंगे / ;----मक्खी -मच्छर आदि छुद्र जीवों को दूर करके भी आत्मिक -शांति प्राप्त करें / महगाई से बचाव का तरीका ;------सामान क़ी उपयोगिता हो तो सामान खरीदें / बजट के अनुसार प्लानिंग करें / सीजनल सब्जियां खरीदे ,पोषक भी होती हैं और सस्ती भी / घर के नजदीक जाना हो तो पैदल चलें /
August 06, 2011
August 05, 2011
चैतन्य आत्मा
चैतन्य आत्मा ;-मानव शरीर माता के गर्भ में स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं होता ,उसके विकास का कारणशरीर के भीतर रहने वाला जीव है / जीव केबिना प्राकृत शरीर न आकार ग्रहण कर सकता है और न ही विकसित हो सकता है /जब किसी प्राकृत पदार्थ में विकास लक्छित होता है ,तब यह समझा जाना चाहिए की उसमे चैतन्य आत्मा विद्यमान है / विराटविश्व उसी तरह विकसित हुआ है जिस तरह एक शिशु का शरीर विकसित होता है /इसलिए "दिब्य तत्व तर्कसंगत है " किन्तु यह वाणी एवं मन की अवधारणा से परे है / काळ इश्वर की शक्ति है /जो सब प्रकार से भौतिक गति का नियंत्रण करती है / लोग त्रिलोक में समय -समय पर होने वाले प्रलयों एवं जन्म-मृत्यु को भूल जाते हैं ,यही माया है /
जनार्दन त्रिपाठी मो नं 9005030949.
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