जीव हमेंशा प्रेम एवं आनन्द में रहना चाहता
है और उसकी इन्द्रियॉ भोगों में आनन्द अनुभव
कराती हैं | इंन्द्रियों का सम्वन्ध बाहरी संसार
से होता है अत: जब तक जीव इंन्द्रियों के
भोग पर आश्रित रहता है तबतक वह सुखदुख
के जंजाल में पड़ा रहता है | इन्द्रियो
में शक्ति कम होती है |
प्रवृति जीव करता है इंन्द्रियॉ प्रवृति का
पालन कराने में जुट जाती हैं चूंकि इंन्द्रियों
में शक्ति कम होती है इसलिए इंद्रिय शक्ति
समाप्त होते ही निवृति भी
स्वत: हो जाती है | और सुखदुख का उतार
चढ़ाव निरंतर चलता रहता है | जानकार लोग
अपने जीवन को ऐसे व्यवस्थित करते हैं कि
वे अपने आप तृप्त एवं संतुष्ट रहते हैं |
हम अभ्यास से अपने को शान्त कर सुख
और संतुष्ट जीवन बिता सकते हैं |
हम पृथ्वी पर कई हजार वर्ष तक जीवित
रहने नही आए हैं | समाज एवं सरकारों ने
कुछ नियम बना दिए हैं वे नियम भौतिक
क्रियाओं की पूर्ति हेतु हैं एवं माया के संसार
की रचना किए हुए हैं |