१-पृथ्वी के सभी पदार्थों में वायु रमण करता है ,असुद्ध और दुर्गन्ध आदि दोषों से भरा वायु सुखों का नाश करता है /वायु प्राण तत्त्व है/और यह प्राणतत्व ही इश्वर है/वायु के बिना पृथ्वी पर कुछ भी संभव नहीं है/ २.पृथ्वी, जल ,वायु,अग्नि और आकाश इन पञ्च तत्वों के संयोग से जीव का शारीर बनता है/इन पञ्च तत्वों को एक सूत्र में बांधने का कार्य कौन करता है? ३.जीव का शरीर हार्डवेयर है और यह दृश्य है/और शरीर में रमण करने वाली जीवनीशक्ति शाफ्त्वेयर है और यह अदृश्य है / ४हम आकार देखने के आदीहो चुके हैं इसलिए .जब हम इश्वर या जीवनीशक्ति को खोज रहे होते हैं तो उसे भी आकार के रूप में देखना चाहते हैं / ५.प्रकृति के विराट और अद्भुत स्वरूप में जहाँ एक ओर जीवनोपयोगी एवं कल्याणकारी पदार्थ हैं,वहीं दूसरी ओर इसके भयावह स्वरूप भी दिखाई देते हैं,मनमे प्रश्न उठता हैकि-यह अद्भुत प्रकृति यह विराट संचेतना कहाँ से आयी?इसका नियंता कौन है? इसी प्रश्न के उत्तर में हमारे मन नें एक सर्वशक्तिमान इश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया है/ ६. हमनें उस इश्वर को खोज्खोज्कर और निरंतर कठोर साधना से उसका परिचय पाने का प्रयत्न किया तब उस इश्वर के अनेकानेक रूप उभरकर सामने आये/ ७. जिस प्रकार इस भौतिक जगत क़ो देखनें के लिए नेत्रों की आवश्यकता होती है,उसी प्रकार दिब्य तत्वों क़ो जाननें एवं समझनें के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है/ ८. जन्म के समय जीव की अपनी कोई भाषा नही होती,और न ही कोई अपना ज्ञान/ जो कुछ भी ज्ञान उसके पास होता है वह दूसरों से सीखाहुआ / ९. सृष्टि के आरंभ में जीव क़ो शिक्छा देने वाला जब कोई नहीं था तब उसने प्रकृति के मद्ध्य ज्ञानार्जन किया/पशु पक्छियों में स्वाभाविक प्राकृतिक ज्ञान होता है, पक्छी अपना घोसला एवं मकरी अपना जाल स्वाभाविक प्राकृतिक ज्ञान से ही बना लेती है/ १०. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ही धुरी पर घूम रहा है,यह जर-चेतन संसार एक दुसरे के सहयोग से ही परिचालित है यदि किसी श्रृंखला की एक कड़ी भी टूट जाये तो सब कुछ बिखर जायेगा/ मनुष्य इतना पीड़ित है की उसे प्रतिपल सहानुभूति एवं सेवा की जरुरत है/
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ईश्वर की खोज
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addhyatma
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