January 05, 2011

लालच

मानसिक अदुर्दर्शिता की तृष्णा में मुग्ध होकर हम लोभ क़ो लक्छ्य मन लिए हँ,और निरंतर उसी की प्राप्ति के कठिन प्रयत्नो में उलझे है/ पशुपक्छी शारीरिक आवश्यकता पूर्ण हो जाने पर दौर धुप बंद कर देते हैं,परन्तु हम शारीर की आवश्यकता पूर्ण होने पर भी संग्रह के लोभ,प्रदर्शन के अहंकार,और सम्बन्धियों के मोह में फंसकर आवश्यक अनावश्यक ,उचित अनुचित का विचार किये बिना निरंतर लालच में फसें हैं/जब सारे सात्विक लोग आलसी एवं प्रमादी हो जाते हैं तो धन-दौलत पर राक्छ्सी प्रवृति के लोगों का कब्ज़ा हो जाता है/

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