यदि हम लगातार परिचित माहौल में रहते हैं,तो इससे निश्चिन्तता तो होगी,पर विकास की कोई गुंजाइश नहीं होगी।यह सर्कस पर कलावाजी वाले झूले की तरह है। जब तक झूले के साथ झूलते हैं तबतक तो सब ठीक होता है।लेकिन जब रस्सी छोड़ कर दूसरी रस्सी पकड़ने की कोशिश करते हैं तो दोनो रस्सियों के बीच की स्थिति बड़ी भयावह होती है।क्योकि उस समय हम न इधर के होते हैं न उधर के।
जो लोग भी जीवन के दूसरे आयामों के बारे में पता लगाना और अनुभव करना चाहते हैं उन सबकी यही दसा होती है।वे जीवन के दूसरे पहलू को जानना तो चाहते हैं,लेकिन अपने परिचित आयाम को एक पल भी छोड़ना नहीं चाहते।
February 24, 2020
निश्चिन्तता
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