January 25, 2011

भोग एवं कामनाएं

सभी प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे,और मरने के बाद अप्रकट हो जायेंगे/जीव बलवान काल की प्रेर्ड़ा से भिन्न भिन्न अवस्थाओं में भ्रमण करता है ,किन्तु काल के प्रबल पराक्रम क़ो नहीं जनता/ प्राणी सुख की अभिलाषा से जिस जिस बस्तु क़ो बड़े कष्ट से प्राप्त करता है ,उस उस क़ो काल विनष्ट कर देता है,जिस के लिए जीव क़ो बड़ा शोक होता है/मन्दमति मनुष्य अपने नाशवान शरीर तथा उसके सम्बन्धिओन के धन आदि क़ो मोह बस नित्य मान लेता है/ तथा उसी में आनंद मानने लगता है/  यह संसार असार है ,यह अत्यंत दुःख रूप एवं मोह में डालने वाला है/ सुख न तो किसी जीव क़ो है और न ही उस जीव के चक्रवर्ती राजा क़ो/ पृथ्वी पर जो जीव अपने आप में ही रमण करने वाला,और अपने आप में ही तृप्त एवं संतुष्ट है वही सुखी है/इस संसार में २ ही प्रकार के लोग सुखी होंगे,१.अत्यंत मूढ़ २.बुद्धि से इश्वर क़ो प्राप्त कर चुके लोग/ बीच के संसयापन्न  लोगों क़ो दुःख ही दुःख होगा/ सांसारिक भोगों का अंत नही है,अनंत ब्रह्माण्ड में अनंत तरह के भोग हैं/ऐसे कामनाएं भी अनंत हैं,यदि मनुष्य समस्त दिशाओं क़ो जीत ले,और भोग ले, तब भी उसके लोभ का अंत नहीं होगा/जिन्होंने अपना मन और प्राण इश्वर में समर्पित कर रखा है,उनकी कामनाएं उन्हें सांसारिक भोगों की ओर ले जाने में समर्थ नहीं होती/

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