जिस प्रकार मनुष्य युक्ति के द्वारा ,आग,दूध ,पृथ्वी से अन्न, जल और ब्यापार से अपनी आजीविका प्राप्त कर लेता है,वैसे ही विवेकी पुरुष अपनी बुद्धि - ज्ञान द्वारा इश्वर क़ो प्राप्त कर लेते हैं/ इश्वर का स्वरुप ज्ञान रूप है/ उसमे माया द्वारा रचित विशेषताएं नही हैं/ और किसी भी वैदिक या लौकिक शब्द की वहां तक पहुंच नहीं है/इश्वर के स्वरुप के छोटे से भाग में पशुपक्छी और मनुश्यादी की श्रृष्टि विद्यमान है/ मन क़ो पूर्णतया एकाग्र करके इश्वर और उसके आश्रय से रहने वाली माया क़ो समझा जा सकता है/ जैसे ब्रिक्छ की जड़ क़ो पानी से सीचना ,उसकी शाखाओं ,डालिओं, पत्तों, फलों ,फूलों क़ो भी सीचना है,वैसे ही इश्वर क़ो समझना सम्पूर्ण प्राणियों सहित अपने आप क़ो भी समझना है/ इश्वर का रह्श्य तर्क वितर्क -कुतर्क से परे है ।
जनार्दन त्रिपाठी मो नं 9005030949
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