January 01, 2014

आध्यात्म

पृथ्वी पर कुछ भी स्थाई नही है | यह जड़ चेतन
संसार एक दूसरे के सहयोग से संचालित है|
सेवा भाव से जो ब्यक्ति मानवता के विकास हेतु
काम करता है ,वह अपने नाम ,रूप एव कीर्ति
को पृथ्वी पर अमर कर देता है| ं
यह शरीर हड्डी मांस व रूधिर का पिण्ड है| इसमे
5 ग्यानिेन्द्र्यां एवं 5 कर्मेन्द्रियां हैं | भोग इन्द्रियों
के विषय हैं , भोगों में प्रवृति क्रृत्रिम व निवृति
स्वाभाविक होती है| (कामना तो कृत्रिम रूप से
होती है परन्तु कामना से निवृति स्वाभाविक हो
जाती है ) |
अहंकारी,मिथ्याचारी,ईर्षालु,रिश्वतखोर,तथा दहेज
लोभी एवं अकूत धन संगरह करने वाला मृत्योप
रांत अपने सूछ्म शरीर से स्वप्न देखते हुए मनुष्य
के समान हजारों वर्ष तक यातनाएं झेलता है|
जनार्दन त्रिपाठी
मो़ न. 9005030949

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