Living in present is importent.
शनिवार, नवंबर 04, 2017
सोमवार, सितंबर 11, 2017
आत्मविश्वास
संसार का इतिहास बस ऐसे थोड़े से लोगों का इतिहास है, जिन्हें अपने आप में विश्वास था। यदि हम ईश्वर में विश्वास करते हैं और अपने आप में नहीं तो समझें कि नास्तिक हैं। जब कोई अपने आप में विश्वास खोता है तभी से उसके कष्ट शुरू हो जाते हैं। समस्त धर्मों के उद्देश्य दुखों से मुक्ति है। जीवन अल्प है, संसार के आडम्बर क्षणभंगुर हैं। धर्मों के मसीहा भी हमारे समान ही मनुष्य थे, एक मनुष्य का उस स्थिति में पहूचना ही इस बात का प्रमाण है ,कि उसकी प्राप्ति प्रत्येक मनुष्य के लिए संभव है बस अपने आप में विश्वास होना चाहिए।
जनार्दन त्रिपाठी 9005030949
शनिवार, अगस्त 19, 2017
माया में पैर फंसाने के लिए नहीं सोचना चाहिए।
पृथ्वी पर प्रभु ने जो काम सौंप कर भेजा है, सब नहीं चाहते हुए भी वही कर रहे हैं । कोई कबाड़ उठा रहा है, कोई नाली , सड़क इत्यादि निर्माण कर रहा है, कोई धर्म कर्म, पूजा पाठ, कोई कुछ, कोई कुछ कोई कुछ भी नहीं ।
जनार्दन त्रिपाठी मो नं 9005030949
बुधवार, अगस्त 09, 2017
यज्ञ
जोदेंगे वही वायु एवं जल के रूप में वापस मिलेगा। वायु सोधन के उद्देश्य से अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मुल्यवान सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि में आहुति देना यज्ञ है। यज्ञाग्नि जब तक जीवित रहती है उष्णता एवं प्रकाश की अपनी विशेषता नही छोड़ती , उसी प्रकार हमे भी गतिशील धर्मपरायण , पुरुषार्थी एवं कर्तव्य निष्ठ बने रहना चाहिए। यज्ञाग्नि का अवशेष भस्म मस्तक पर लगाते हुए विचार करना चाहिए कि मानव जीवन का अन्त भस्म के रुप मे शेष रह जाएगा।
२-देव यज्ञ- दुष्प्रवृत्तियों का त्याग, देवप्रवृत्तियों का पोषण।
३- पितृ यज्ञ - काया की समाप्ति के बाद भी जीवन यात्रा रुकती नहीं है। माता पिता के प्रति श्रद्धा।
४- भूत यज्ञ - गाय, कुत्ता,कौआ, चींटी, एवं देवत्व शक्तियों के निमित्त।
५- मनुष्य यज्ञ- अतिथि सत्कार एवं दान।
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ब्रह्म जीव एवं माया तीन तत्वों से पृथ्वी चलती है | जीव एवं माया (परा एवं अपरा शक्ति) ब्रह्म की शक्ति हैं | हर जीव का शरीर उसका साधन है |...
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स्वयं पर विश्वास करें | शरीर को स्वस्थ वनावें हीनता बोध न करें | संयमी एवं अनुसासित रहें अपना कार्य ईश्वर का आदेश समझ कर करें भय को दूर क...
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ब्रह्मसूत्र ;हिन्दुओं के ६ दर्शनों में एक है/इसके रचयिता बादरायण हैं/ ब्रह्मसूत्र में चार अध्ह्याय है /1.समन्वय 2.अविरोध ३ साधना एवं ४ फल...
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चैतन्य आत्मा ;-मानव शरीर माता के गर्भ में स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं होता ,उसके विकास का कारणशरीर के भीतर रहने वाला जीव है / जीव केबिना प्...
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