August 09, 2017

यज्ञ

मनुष्य सभी प्राणियों मे श्रेष्ठ है। पृथ्वी को ठीक रखना मनुष्य की जिम्मेदारी है। अपने आसपास ठीक रखना हम सब की जिम्मेदारी है। पृथ्वी को जो देंगे वह अन्न,फल, सब्जी , इत्यादि के रुप में, और अन्तरिक्ष को
जोदेंगे वही वायु एवं जल के रूप में वापस मिलेगा। वायु सोधन के उद्देश्य से अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मुल्यवान सुगंधित  पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि में आहुति देना यज्ञ है। यज्ञाग्नि जब तक जीवित रहती है उष्णता एवं प्रकाश की अपनी विशेषता नही छोड़ती , उसी प्रकार हमे भी गतिशील धर्मपरायण , पुरुषार्थी एवं कर्तव्य निष्ठ बने रहना चाहिए। यज्ञाग्नि का वशेष भस्म मस्तक पर लगाते हुए विचार करना चाहिए कि मानव जीवन का अन्त भस्म के रुप मे शेष रह जाएगा।
ज्ञ का मुख्य उद्देश्य धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को सत्प्रयोजन के लिए संगठित करना है। स्नान , दान,होम तथा जप यज्ञ के अंग हैं।
गृहस्थ धर्म के यज्ञ --
गृहस्थ को यह प्रतिदिन करना चाहिए।

१-ब्रह्म यज्ञ-    मृतात्मा के स्नेह उपकारों  का स्मरण ।
२-देव यज्ञ-  दुष्प्रवृत्तियों का त्याग, देवप्रवृत्तियों का पोषण।
३- पितृ यज्ञ - काया की समाप्ति के बाद भी जीवन यात्रा रुकती नहीं है। माता पिता के  प्रति श्रद्धा।
४- भूत यज्ञ - गाय, कुत्ता,कौआ, चींटी, एवं देवत्व शक्तियों के निमित्त।
५- मनुष्य यज्ञ- अतिथि सत्कार एवं दान।
जनार्दन त्रिपाठी मो नं 9005030949

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