September 18, 2020

जीवन

जब तक सासें चल रही है तभी  तक जीवन है ।  कौन जाने शरीर को त्यागकर अनंत अंतरिक्ष में गुम हुआ हमारा सांस फिर पृथ्वी पर किसी रूप में  लौटे कि न लौटे । प्रकृति प्रदत्त इस अनमोल जीवन का विचार कर उपयोग करना चाहिए । अहं भाव में लीन हम कष्ट झेलते हैं । और अहं से मुक्त होकर अपनें अंदर कल्याणकारी भाव पैदा करते हैं एवं  लोगों के बीच रहते हुए भी हम दिव्य हो जाते हैं ।
                                      Janardan Tripathi 

September 14, 2020

सर्वश्रेष्ठ निर्माता-निर्देशक ईश्वर

निर्देशक क्षमता, योग्यता, कुशलता एवं पात्रता का निरीक्षण कर अभिनय की भूमिका वितरित करता है । अभिनय दल में सबसे अधिक ऊर्जावान और चुनौतियों से निपटने में सक्षम को हीरो एवं अन्य को यथोचित भूमिकाएं देता है 
       ईश्वर रूपी निर्माता-निर्देशक द्वारा भी संसार से संबंधित यही नियम है । 

September 12, 2020

अपराध बोध

मनुष्य  भौतिकता के वशीभूत होकर स्वार्थवश अनैतिक कार्य करता है । हिंसा के दो प्रकार हैं ।शारीरिक एवं भावनात्मक । भावनात्मक हिंसा में मनुष्य दूसरों को धोखा देता है एवं उनके साथ अवांछित आचरण करता है ।चूंकि उसको यह मालूम रहता है कि यह गलत है अतः इससे होने वाले अपराध बोध के कारण वह मानसिक बिमारियों की चपेट में आ जाता है ।भावनात्मक हिंसा करने वाला आरंभ में इस अपराध बोध को स्वीकार नहीं करता ।परंतु धीरे धीरे उसकी अंतरआत्मा उसे यह  स्वीकार करने पर मजबूर कर देती है । कुछ  अच्छे संस्कार के लोग अपने कृत्य के पश्चाताप के रूप में पीड़ित से या तो क्षमा याचना कर लेते हैं या उनके नुकसान की भरपाई करके मुक्ति पा लेते हैं । अतः  इससे  सावधान रहना चाहिए ।
                 Janardan Tripathi. 

July 27, 2020

क्रोध

 आप किसी सभा में  शान्तिपूर्वक  बैठे हों ,और बगल में बैठा ब्यक्ति डिस्टर्व करे तो आप को क्रोध आना स्वाभाविक है । ये क्रोध कहाँ से आया ? 
  हम अनुभव करते हैं  कि काम, क्रोध, लोभ और मोह प्रकृति की शक्ति हैं और जीव के शरीर के बाहर सर्वत्र व्याप्त हैं जीव के दिमाग को कुछ समय तक नियंत्रित करने की इनमें क्षमता है।अवसर उत्पन्न होते ही जीव के दिमाग में प्रकट हो जाते हैं ।और अपना कार्य कर चले जाते हैं एवं  उस समय उनके द्वारा उत्पन्न किए गए प्रभाव को जीव भोगता है ,मनुष्य पर इसका प्रभाव ज्यादा होता है, उसके विकास रुक जाते हैं । अतः इनके प्रभाव में आने से बचना चाहिए ।         Janardan Tripathi 
addhyatmajanardantripathi.blogspot.com 

March 16, 2020

कर्म

हम रोजाना कर्म करते हैं। अध्यात्म के अनुसार,कर्म अच्छा हो या बुरा,सभी बन्धन  के कारण हैं। सब सोचते हैं कि जिन्दगी  मिली है कुछ कर के दिखाऊं। किसको दिखाना है? जन्म देने वाले माता पिता क्या यह जानते थे कि हम किसको जन्म देने जा रहे हैं ? बहुत से लोग जिनसे पूर्व में हमारे सम्बंध थे ,हम एक साथ पढ़े ,खेले कार्य किये, इस पृथ्वी पर ही हैं ,लेकिन हमारे लिए इस जन्म में दुर्लभ हैं। हमनें दिखाने के लिए घर बढ़ाए ,गाड़ियां बढ़ायी, जमीन बढ़ाए इत्यादि।फरेब की दुनियां बढ़ायी। हमनें ऐसे कोई कर्म नहीं किये जो इसमाया के संसार को  रचने वाले मायाधीश को देखने-सुनने योग्य हो।
                 जनार्दन त्रिपाठी।

February 24, 2020

निश्चिन्तता

यदि हम लगातार परिचित माहौल में रहते हैं,तो इससे निश्चिन्तता तो होगी,पर विकास की कोई गुंजाइश नहीं होगी।यह सर्कस पर कलावाजी  वाले झूले की तरह है। जब तक झूले के साथ झूलते हैं तबतक तो सब ठीक होता है।लेकिन जब रस्सी छोड़ कर दूसरी रस्सी पकड़ने की कोशिश करते हैं तो दोनो रस्सियों के बीच की स्थिति बड़ी भयावह होती है।क्योकि उस समय हम न इधर के होते हैं न उधर के।
    जो लोग भी जीवन के दूसरे आयामों के बारे में पता लगाना और अनुभव करना चाहते हैं उन सबकी यही दसा होती है।वे जीवन के दूसरे पहलू को जानना तो चाहते हैं,लेकिन अपने परिचित आयाम को एक पल भी छोड़ना नहीं चाहते।

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