August 23, 2024

लौकिक जीवन

लोकोत्तर विषयों की चिन्ता के लिए मनुष्य के पास न समय है न शक्ति। हम जिस जीवन को जी रहे हैं उसे नही समझ पाते तो मृत्यु को क्या समझेंगे? समाज की ईकाई परिवार है और परिवार की ईकाई मनुष्य। अधिकांश सामाजिक दोषों का मूल कारण स्वार्थपरता है। अपनी उन्नति के साथ समाज की उन्नति की आकांक्षा करनी चाहिए। साहस और परोपकार की भावना - दया, करूणा, सच्चाई विवेकशीलता,नम्रता और आत्मसम्मान को कभी नही छोड़ना चाहिए। जब किसी परिवार का स्वामी दुराचारी होता है तो वह सासन करने की दैवी अनुमति खो देता है। जिससे बड़ी तीव्रता से उसका ह्रास होता है।अगर सदाचारी है तो उन्नति करता है। दुनिया में क्षमा, प्रेम,धैर्य और शान्ति से बड़ा कोई शस्त्र नही है। हम अगर बुद्धि के जाल को काट दें और सरल प्राकृतिक जीवन अपना लें तो फिर सुखी हो जायेगे।हम इतिहास के जिन महापुरुषों को आदर्श मानते हैं उन्होंने कभी आक्रमणात्मक युद्ध नही किया - रक्षात्मक युद्ध किया।

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