वेद;-प्रारम्भ में वेदों का ज्ञान गुरु -शिष्य परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा ,बाद में महर्षि पराशर के तेजशवी पुत्र कृष्ण द्वैपायन व्यास ने वेदों के इस विशाल ज्ञान को लिपिबद्ध किया /यह समस्त ज्ञान चार वेदों में संकलित है / १;-रिगुवेद - इसमें सर्वाधिक प्राचीन ज्ञान संगृहीत है ,तथा पदार्थों के गुण एवं उन गुणों के नियंता का वर्णन है/ इसमें १० मंडल हैं और दसों मंडल में १०५२१ मंत्र हैं/ ये सारे मंत्र १०२८ सूत्रों में विभाजित हैं / २;-यजुर्वेद -इसमें यज्ञ कर्म के मंत्रो का संग्रह है, एवं इसमें४० अद्ध्यायो में कुल १९७५ मंत्र हैं/ ३;-सामवेद -इसमें ६ अद्ध्यायों में १८७३ मंत्र हैं तथा इसमें ऐसी मान्यता है कि गाकर मंत्र बोलने से जीव का परमात्मा से समन्वय होता है/ ४;-अथर्ववेद -अथर्ववेद को पवित्र वेद का स्थान नहीं प्राप्त है;इसमें मारण,मोहन ,उच्चाटन ,तथा जादू ,टोने आदि के मंत्र मिलते हैं/प्रारंभ में पवित्र ब्राह्मन -पुरोहितों का वर्ग इसे वेदों की श्रेणी में लेने को तैयार नहीं था /परन्तु आगे चलकर तीनो वेदों के साथ रखा जाने लगा / इसमें २० कांड हैं ,जिन्हें ७3१ सूक्तों में बाटा गया है ,तथा इसमें कुल ५९७७ मंत्रो का उल्लेख है/ जनार्दन त्रिपाठी मो,न, 09005030949
अथर्ववेद में चिकित्सा पद्धतियो ,पति-पत्नी के कर्तव्यों, विवाह के नियमों, मानमर्यादाओ का भी उत्तम विवेचन है । इसमें ब्रह्म की उपासना सम्बन्धी बहुत से मंत्र भी हैं ।
वेदांग-समय बीतने के साथ वैदिक साहित्य जटिल एवं कठिन प्रतीत होने लगा उस समय वेदों के अर्थ तथा विषयो के स्पष्टीकरण के लिए अनेक सूत्र ग्रंथ लिखे जाने लगे इन्हें वेेदांग कहा गया ।
वेदांग 6हैं । शिक्षा, छन्द, व्याकरण, निरुक्त, कल्प और ज्योतिष । पहले 4वेदांग मंत्र के शुद्ध उच्चारण और अर्थ समझने के लिए तथा अंतिम दो वेदांग धार्मिक कर्मकांड और यज्ञों का समय जानने के लिए आवश्यक है ।
वैदिक काल, वैदिक साहित्य, वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति इत्यादि में समय-समय पर वेदों की समीक्षा की गई है । Janardan Tripathi.