December 03, 2018

दर्पहारी

परमपिता परमेश्वर किसी के द्वारा शक्ति या प्रभुत्व का अपव्यवहार सहन नहीं करते। वे किसी का भी दर्प वर्दास्त नहीं करते। इसलिए व्यवहार जगत में हम देखते हैं कि,जो व्यक्ति क्षमता का अपव्यवहार करता है वह एक दिन ऐसा गिर जाता है कि उसकी अस्थि, चर्म सब कुछ पहचान के अयोग्य हो जाता है।
        सत्ता के बिना कोई अस्तित्व सिद्ध नहीं होता है। कार्य हो रहा है और एक सत्ता उसे देख रही है। वस्तु साक्षी सत्ता है। किन्तु द्रस्टा सिद्ध सत्ता है।
   

         जनार्दन त्रिपाठी।

November 13, 2018

सामान्य एवं दार्शनिक बुद्धि मनुष्य

सामान्य मनुष्य एक ऐसी ब्यक्त सत्ता चाहता है, जो उसका सुख दुख समझे।और हर एक विकट परिस्थिति में वेदना सुनें।और उसके जैसा हो।सामान्य मनुष्य अव्यक्त सत्ता के प्रति आकर्षित नहीं होता। भारत में दार्शनिक बुद्धि वाले लोग अब्यक्त सत्ता मानते हैं। ज्ञानी अनुमान लगा लेते हैं कि अब्यक्त सत्ता है। और अब्यक्त सत्ता होनें के कारण उनके केन्द्र को पाना बहुत कठिन है।
     मनुष्य पृथ्वी पर अधिकतम 125 वर्षों के लिए आता है, इस अल्प समय में वह अव्यक्त सत्ता को नहीं समझ सकता।अतः मृत्यु अतिसंनिकट समझ कर कार्य करना उचित है। पशु पक्षी,  पेड़ पौधे एवं अन्य जीव जंतु अपने सहज वृत्ति से प्रेरित होकर कर्म करते हैं।
          जनार्दन त्रिपाठी

July 09, 2018

God & Nature

एक से अनेक होने की इच्छा से परमपिता परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की। समय और प्रकृति सब जीवो को भ्रमित कर रखते हैं। प्रकृति से उत्पत्ति, पालन पोषण तथा संहार करवाकर  समय (काल) अपना आहार तैयार करवाता है। परमेश्वर आग तत्व से भी जटिल हैं। अग्नि तत्व को किसी रूप विशेष में ही रख़ कर ले जाया जा सकता है। 
                     परमेश्वर को समझना  अग्नि को समझने जैसा ही है।   
                     जनार्दन त्रिपाठी

January 11, 2018

बाहरी संसार की खुशी

हम एक के बाद एक इच्छा पूर्ति मे‌‍ लगे रहते हैं। बाद में ज्ञात होता है कि बाहरी संसार की खुशी मात्र भ्रम है। जैसे ही एक इच्छा पूरी होती है दूसरी इच्छा उसकी जगह ले लेती है। हमारा जीवन ऐसै ही चलता रहता है। हमारी इंसानी व्यवस्था इस प्रकार रची गयी है कि हम इच्छापूर्ति की ओर ही ध्यान लगाए रहते हैं। लेकिन जीवन के किसी न किसी मोड़ पर हमें एहसास होता है कि बाहरी संसार की खुशी एक क्षणिक भ्रम है। अंत में हमें महसूस होता है कि किसी भी चीज ने हमें वो स्थाई खुशी और संतुष्टि नहीं दी जो हम चाहते थे।
   Janardan Tripathi. 

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