ब्रह्म जीव एवं माया तीन तत्वों
से पृथ्वी चलती है | जीव एवं
माया (परा एवं अपरा शक्ति)
ब्रह्म की शक्ति हैं | हर जीव
का शरीर उसका साधन है |
पृथ्वी पर ८४ लाख जीव हैं |
मनुष्य रूपी जीव का साधन
ही ऐसा है कि इसके सहारे
ब्रह्म को जाना एवं उसके पास
जाया जा सकता है |
October 14, 2014
ब्रह्म-जीव-माया
October 06, 2014
क्या आपने अपना चेहरा देखा है?
आप अपनी आंखों से स्वयं को नहीं
देख पाते और ईश्वर को इन्हीं आंखों
से देखने का प्रयास करते हैं | दर्पण
की सहायता से हम अपना उल्टा
प्रतिविम्ब देखते हैं|
प्रभु का सीधा प्रतिविम्ब
इक्सपर्ट की सहायता से देखा जा
सकता है |
जनार्दन त्रिपाठी
मो़ नं़ 9005030949
September 30, 2014
माया-जीव
जैसे स्वप्न मे देखे जाने वाले पदार्थों
से उसे देखने वाले का कोई सम्वंध
नही होता वैसे शरीर से अतीत अनु
भव माया द्वारा नष्ट हो जाते हैं | जिस
समय समस्त इंद्रिया विषयों से हट
कर ईश्वर में स्थित हो जाती हैं उस
समय मनुष्य के रागद्वेषादि सारे
क्लेश नष्ट हो जाते हैं |
Life cycle
Life cycle involves
Birth. Growth. Re-
Production and
Death .
and seeks answer to
what is the purpose
of of life ,we shall not
answering.
we observe patients
lying in coma in hospitals
virtually supported by
machines which replace
heart and lungs. the patient
otherwise brain dead . Are
such patients who never
come back to normallife living or
non-living ? Janardan Tripathi.
ईश्वर को
दर्शन .धार्मिक ग्रन्थ .धर्मस्थल ईत्यादि
ईश्वरीय सत्ता को बताने का प्रयास है |
तिव्रसाधना और लगन से मूर्ति में चैतन्य
सत्ता का अनुभव किया जा सकता है |
ईश्वर को देखा जा सकता है.उनसे बातें
किया जा सकता है | परन्तु कौन इसकी
परवाह करता है |
अपनेआप को किसी उच्चतर की सेवा
में लगायें. और जब थोड़ा अवकाश मिले
तो लोगों को इकट्ठाकर अध्ययन
संगीत. वार्तालाप और अवतारों के चरित्र
की दैवी विशेषताओं पर विचार विमर्श
करें |
हम चाहे जिस कर्म में लगे हों यह समझें
कि ईश्वर ने ही अपनेआप को विभिन्न
जीवो के रूप में अभिव्यक्त किया है |
जीव-सेवा . ईश्वर-सेवा है | सबमें देवत्व
की अनुभूति अहंकार को ठहरने नही
देती | इसका अनुभव कर लेने पर हम
किसी से न तो ईर्ष्या करते है और न
ही हमारे अन्दर किसी पर दया करने
की जरूरत पड़ती | जीव को शिव का
रूप जानकर उसकी सेवा करने से चित्त
शुद्ध होता है | और अविलम्व ऐसा
साधक यह अनुभव करता है कि वह
भी ईश्वर का अविभक्त अंश है |
September 04, 2014
वैराग्य
जाना वैराग्य नहीं है | घर छोड़ना
कोई बड़ी बात नहीं है | जिसके
मन में आसक्ति है „ वह कही चला
जाय वहा किसी न किसी चीज
से राग बना ही लेगा | जिसदिन
यह बात समझ में आ गई कि यह
शरीर मिट्टी है ; जिस संसार को
हम देख रहे हैं यह सदा नही रहेगा
और मृत्यु -सत्य एवं अवश्यम्भावी
है संसार किसी की भी जागीर
नही है| तो समझें वैराग्य हो गया |
August 22, 2014
भक्ति
हम सभी अपने अपनेभाई वहन
माता पिता पुत्र पत्नी इत्यादि तथा
समाज एवं संसार से सुख चाहते
है| और सुख प्राप्ति के विभिन्न
प्रयत्न करते है | ईश्वर की भक्ति
भी सुख प्राप्ति हेतु ही करते है|
किसी से कुछ प्राप्त करने के
तीन उपाय हैं एक जोरजबरदस्ती
से दूसरा चोरीकर तीसरा मॉगकर|
सांसारिक लोग सुख हेतुकिसी
न किसी से मॉगते है चोरी करते
हैं या जबरदस्ती पाने का प्रयास
करते हैं |
संसार में सुख नहीं है यहां कोई
सुखी नही है सब एक दूसरे से
मॉगते चोरी करते या जबरदस्ती
करते हैं |परन्तु जो रहेगा वही न
पायेंगे सो दुख व पदार्थ जो संसार
में है वह पाते हैं |
ईश्वर में सुख है | लेकिन वहा न
चोरी किया जा सकता न
जबरदस्ती मॉगने पर केवल इंद्रिय
सुख ही मिलेगा |
सब संसार ईश्वर का है सब जीव
जन्तु पेड़पौधे ईश्वर के हैं शरीर
ईश्वर के पंचभूतों का है अत: छोटे
से भूखण्ड पर कब्जा कर तेरा
तुझको अर्पण कहना मूर्खता है |
ईश्वर को कुछ देकर पाने की
इच्छा धुर्तता है | मंदिर में ही ताले
में बंद कर दिये है सोचना मक्कारी
है |
सुख केवल निश्छल हृदय व पवित्र
मन से ईश्वर भक्ति में भक्त को है |
ईश्वर भक्ति दवा है और समस्त दुख
क्लेश रोग है दवा का सेवन किये
बिना रोग से मुक्ति असम्भव है |
जनार्दन त्रिपाठी
August 21, 2014
सूक्ष्म
श्रृष्टि संचालन प्रक्रिया पर ध्यान दें
तो प्रतीत होगा कि सुक्ष्म श क्तियों
के सहारे ही पृथ्वी सूर्य का चक्कर
लगाती है | तात्पर्य है कि सूक्ष्मशक्ति
स्थूल से ताकतवर होती है |
जल स्थूल है लेकिन सूक्ष्म वाष्प
मे परिवर्तित होने पर उसकी ताकत
बढ़ जाती है | इसीप्रकार हर स्थूल
वस्तु सूक्ष्म मे परिवर्तित होने पर
ताकतवर हो जायेगी |
May 29, 2014
May 04, 2014
शरीर/humen body/
शरीर का तभी तक महत्व है जब तक उसमे
जीव वसता हो | शरीर में बैठे जीव के दर्शन
के आकांक्षी को ;शरीर को मंदिर की तरह
पवित्र रखने का अभ्यास करना चाहिये|
जिसकी आंखें शरीर में रहते हुवे जीव को
देख सकती है' वही देव को देख सकता है
वही परोपकार कर सकता है तथा दूसरों को
सुख सन्तोष देते हुवे स्वयं सुख की अनुभूति
कर सकता है|
जनार्दन त्रिपाठी मो 9005030949
March 12, 2014
ईश्वर का निराकार रूप
यह हमारे अंतःकरण में दिब्य भावनाओं एवं
मस्तिष्क में दिब्य विचार के रूप में रहती है |
मनुष्य में ईश्वरीय सत्ता -भावना . ज्ञान सत्ता
एवं हलचल के रूप मे दृष्टिगोचर होती है |
January 01, 2014
आध्यात्म
पृथ्वी पर कुछ भी स्थाई नही है | यह जड़ चेतन
संसार एक दूसरे के सहयोग से संचालित है|
सेवा भाव से जो ब्यक्ति मानवता के विकास हेतु
काम करता है ,वह अपने नाम ,रूप एव कीर्ति
को पृथ्वी पर अमर कर देता है| ं
यह शरीर हड्डी मांस व रूधिर का पिण्ड है| इसमे
5 ग्यानिेन्द्र्यां एवं 5 कर्मेन्द्रियां हैं | भोग इन्द्रियों
के विषय हैं , भोगों में प्रवृति क्रृत्रिम व निवृति
स्वाभाविक होती है| (कामना तो कृत्रिम रूप से
होती है परन्तु कामना से निवृति स्वाभाविक हो
जाती है ) |
अहंकारी,मिथ्याचारी,ईर्षालु,रिश्वतखोर,तथा दहेज
लोभी एवं अकूत धन संगरह करने वाला मृत्योप
रांत अपने सूछ्म शरीर से स्वप्न देखते हुए मनुष्य
के समान हजारों वर्ष तक यातनाएं झेलता है|
जनार्दन त्रिपाठी
मो़ न. 9005030949
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